नई दिल्ली : (फरमान मलिक) संसद और राज्य विधानसभाओं में कानून बनाने वालों को रिश्वत के मामलों में मुकदमे से छूट नहीं है. सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट डालने के लिए रिश्वत लेने पर कानूनी संरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.
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SC का ऐतिहासिक फैसला
CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस एम एम सुंदरेश, जस्टिस पी एस नरसिम्हा, जे बी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने फैसला सुनाया कि वोट के बदले नोट लेने वाले सांसदों, विधायकों को कानूनी संरक्षण नहीं दिया जा सकता है. सात जजों ने सहमति से यह फैसला सुनाया है.
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सांसदों, विधायकों पर वोट देने के लिए रिश्वत लेने का मुकदमा चलाया जा सकता है और इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के पी वी नरसिम्हा राव मामले में पांच जजों की संविधान पीठ का फैसला पलट दिया.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों से संरक्षित नहीं है और 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194 के उलट है. ये दोनों अनुच्छेद निर्वाचित प्रतिनिधियों को मुकदमेबाजी से कानूनी छूट देते हैं, ताकि वे बिना किसी डर के काम कर सकें.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 105(2) या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है, क्योंकि रिश्वतखोरी में शामिल सदस्य एक आपराधिक काम में शामिल होता है. जो वोट देने या विधायिका में भाषण देने के लिए जरूरी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपराध उस समय पूरा हो जाता है, जब सांसद या विधायक रिश्वत लेता है. कोर्ट ने कहा कि हमारा मानना है कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों से संरक्षित नहीं है. इसमें गंभीर खतरा है. ऐसे संरक्षण को खत्म किया जाना चाहिए.
CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि “हम पीवी नरसिम्हा मामले में दिए गए फैसले से असहमत हैं, पी वी नरसिम्हा मामले में फैसला, जो विधायक को वोट देने या भाषण देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने से छूट देता है, उसके व्यापक प्रभाव हैं और इसे खारिज कर दिया गया है.
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क्या था पी वी नरसिम्ह राव मामला?
पी वी नरसिम्हा राव का मामला जुलाई 1993 में उनकी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के सिलसिले में सामने आया था. अल्पमत सरकार मामूली अंतर से बच गई थी – पक्ष में 265 वोट और विपक्ष में 251 वोट पड़े थे.
हालांकि, एक साल बाद एक घोटाला सामने आया और आरोप लगे कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों ने पी वी नरसिम्हा राव सरकार के समर्थन में वोट करने के लिए रिश्वत ली थी. 1998 में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सांसदों को उनके भाषणों और वोटिंग को मुकदमेबाजी से छूट मिली हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि कि ऐसी स्थितियों में छूट का दावा विधायी कार्यों के चलाने के लिए जरूरी होने की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है.
CJI ने कहा कि पी वी नरसिम्हा फैसले के नतीजतन एक “विरोधाभासी स्थिति” पैदा होती है, जिसमें एक विधायक जो रिश्वत लेता है और उसके अनुसार वोट देता है, उसे सुरक्षित कर दिया जाता है, जबकि एक विधायक जो रिश्वत लेने के बावजूद स्वतंत्र रूप से वोट करता है, उस पर मुकदमा चलाया जाता है.