रुड़की : (फरमान मलिक) पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय क्रमांक–एक, रूड़की में हिंदी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर उनकी रचनाओं की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। विद्यालय पुस्तकालय में प्रेमचंद द्वारा लिखित पुस्तकों को प्रदर्शित किया गया, जिससे विद्यार्थियों को उनके साहित्य से रूबरू कराया गया।

प्रदर्शनी का उद्घाटन विद्यालय के प्राचार्य चन्द्र शेखर बिष्ट ने किया। इस मौके पर विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा,

“31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास लमही गांव में जन्मे प्रेमचंद ने अपने साहित्य में शोषण, भ्रष्टाचार, गरीबी और जातिवाद जैसे विषयों को उठाया। उनकी कलम हमेशा अन्याय और शोषण के विरुद्ध चली, और इसी कारण वे आज भी प्रासंगिक हैं।”

प्रसिद्ध कहानियों जैसे ईदगाह, नमक का दरोगा और दो बैलों की कथा का विशेष उल्लेख करते हुए उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित किया कि वे प्रेमचंद की रचनाओं को पढ़कर समाज को समझें।

उप प्राचार्या संगीता खोराना ने कहा,

“किसी भी महान लेखक की सच्ची श्रद्धांजलि उनकी रचनाओं को पढ़ना है। प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू दोनों में गहरी साहित्यिक छाप छोड़ी है। उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ यूं ही नहीं कहा गया।”

पुस्तकालयाध्यक्ष पूनम कुमारी ने बताया कि

“ऐसी प्रदर्शनी का उद्देश्य विद्यार्थियों में साहित्य के प्रति रुचि बढ़ाना है। प्रेमचंद की जयंती पर उनकी कृतियों को प्रदर्शित कर विद्यार्थियों को हिंदी साहित्य की गहराई से परिचित कराया गया।”

प्रदर्शनी में विद्यालय के सभी शिक्षक व विद्यार्थियों ने भाग लिया और प्रेमचंद की विभिन्न रचनाओं को देखा व उनकी विषयवस्तु को समझा।

🖋️ मुंशी प्रेमचंद – हिंदी साहित्य के महानायक

मुंशी प्रेमचंद (31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) हिंदी और उर्दू के ऐसे महान लेखक थे, जिनकी कलम ने समाज के सबसे गहरे ज़ख्मों को शब्दों में ढाल कर इतिहास बना दिया। उन्हें “उपन्यास सम्राट” कहा जाता है, और यह उपाधि उन्हें उनके द्वारा लिखे गए यथार्थवादी, सामाजिक और जन-जागरण से भरपूर साहित्य के कारण दी गई।

🔹 जन्म और प्रारंभिक जीवन:

प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उनका जन्म वाराणसी (तत्कालीन बनारस) के पास लमही नामक गाँव में हुआ। बचपन में ही माता-पिता का साया सिर से उठ गया, पर उन्होंने कठिन संघर्षों के बावजूद शिक्षा प्राप्त की और अध्यापक के रूप में नौकरी की।

🔹 लेखन की शुरुआत:

उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत उर्दू में “नवाब राय” नाम से की। बाद में वे प्रेमचंद नाम से हिंदी में लिखने लगे। उनका लेखन आम लोगों की समस्याओं, सामाजिक विषमता, शोषण, गरीबी, जाति व्यवस्था और स्त्री अधिकारों पर केंद्रित रहा।

🔹 प्रमुख रचनाएँ:

  • उपन्यास: गोदान, गबन, कर्मभूमि, निर्मला, रंगभूमि
  • कहानी संग्रह: ईदगाह, पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा, कफन, दो बैलों की कथा, सवा सेर गेहूं

उनकी कहानियाँ आज भी स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं, जो बच्चों को संवेदनशीलता, ईमानदारी और समाज के प्रति जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाती हैं।

🔹 लेखन की विशेषता:

प्रेमचंद का साहित्य न किसी कल्पना में बहता है और न किसी चकाचौंध में उलझता है। वह सीधे समाज के बीच जाकर, आम आदमी की भाषा में, आम आदमी की पीड़ा को शब्द देता है। उनकी कहानियाँ नाटकीय नहीं, बल्कि जीवन के यथार्थ से उपजी होती हैं।

🔹 अंतिम समय:

अपनी अंतिम रचना “गोदान” लिखने के कुछ समय बाद 1936 में प्रेमचंद का निधन हो गया। लेकिन वे अपने पीछे ऐसा साहित्य छोड़ गए जो आज भी करोड़ों दिलों की आवाज़ बना हुआ है।


📚 मुंशी प्रेमचंद हमें सिखाते हैं कि लेखन सिर्फ कल्पना नहीं, जिम्मेदारी भी है। उनकी कलम गरीबों की आवाज़ बनी, और अब वो आवाज़ इतिहास बन चुकी है।

Share this

Comments are closed.

Exit mobile version