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देश-दुनिया

Eid Milad-Un-Nabi 2024: आज है ईद मिलाद-उन नबी…. “जानें इसका महत्व, परंपरा और इतिहास..

Haridwar TimesBy Haridwar TimesSeptember 16, 2024

जिसने एक बेकसूर का कत्ल किया, उसने पूरी इंसानियत का कत्ल कर दिया। वहीं, जिसने एक व्यक्ति की जान बचा ली, मानों उसने पूरी इंसानियत को बचा लिया : पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब

Eid Milad-Un-Nabi 2024 : इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म 571 ईस्वी में सऊदी अरब के मक्का शहर में हुआ था जिस दिन हजरत मोहम्मद का जन्म हुआ था वह दिन 12 रबी उल अव्वल की तारीख थी. हजरत मोहम्मद के पिता का नाम अब्दुल्ला था. इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रबी उल अव्वल तीसरा महीना है.

आमतौर पर 12 रबी अव्वल को ही तमाम मुसलमान पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म दिवस मानते हैं लेकिन कई लोग इस बारे में उनके जन्म दिवस की तारीख 9 रबी उल अव्वल भी बताते हैं. इस हिसाब से पूरा सप्ताह ही हज़रत मोहम्मद की दिखाई रौशनी के नाम रहता है. हजरत मोहम्मद के जन्म दिवस के कारण यह दिन सारी दुनिया के मुसलमानों के लिए बहुत ही खास और महत्वपूर्ण है.

आज है जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी : ईद मिलादुन्नबी के कार्यक्रमों में हजारों मुसलमान शिरकत करते हैं. इस दिन अपने कारोबार को बंद रख अपनी अकीदत का इजहार करते हैं. मुस्लिमों के मुताबिक, हजरत मुहम्मद साहब का पूरा जीवन अनुकरणीय है. उनके बाद कोई नबी या पैगम्बर (अवतार या दूत) नहीं आनेवाला है. अल्लाह ने उनको सबसे आखिर में अपना दूत बनाकर भेजा. मुहम्मद साहब ने अल्लाह का पैगाम दुनिया वालों तक पहुंचा दिया. इसलिए मुहम्मद साहब का पैगाम न सिर्फ मुसलमानों के लिए है बल्कि रहती दुनिया तक अन्य लोगों के लिए भी है.

पैगंबर मुहम्मद से जुड़ा है इतिहास

आपको बताते चलें कि, ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का पर्व इस्लाम के मार्गदर्शक और अल्लाह के दूत कहे जाने वाले पैगंबर मुहम्मद को समर्पित होता है। वहीं पर इस पर्व को मनाने के लिए बी-उल-अव्वल (इस्लामिक कैलेंडर का तीसरा महीना) के 12वें दिन चुना जाता है। इस दिन ही पैगंबर मुहम्मद का जन्म हुआ था. मुहम्मद के यौम-ए-पैदाइश यानी जन्म को ही ‘मिलाद’ कहा जाता है। इस दिन लोग अधिक से अधिक समय अल्लाह की इबादत में बिताते हैं।

इतिहास और महत्वइस दिन को लेकर सबके अपने-अपने तर्क हैं. पैगंबर मोहम्मद की जन्म और वफात की तारीख को एक ही माना जाता है. कुछ लोग हजरत मोहम्मद के जन्मदिन को ईद मानते हैं, कुछ नहीं.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ लोगों का मानना है कि मुसलमान दो ही ईद मनाते हैं, ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा. उनका तर्क है कि नबी यानी हजरत मोहम्मद के जन्म से खुशी तो होती है लेकिन उनके जन्मदिन को ईद से तुलना नहीं की जा सकती है. एक पक्ष यह भी कहता है कि इसे जश्न-ए-मिलाद-उन-नबी कहा जाना चाहिए.

जानिए कौन थे पैगंबर मुहम्मद

कहा जाता है कि, अल्लाह ने समय-समय पर धरती पर अपने दूत भेजे, जो कल्याण के लिए सही होता है इसके लिए जिन्हें नबी या पैगंबर कहा जाता है। हजरत मोहम्मद को अल्लाह का आखिरी दूत कहा जाता है। इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद का जन्म सऊदी अरब के मक्का में साल 570 में इनका जन्म हुआ था।इतना ही कहा जाता है कि, पैगंबर मुहम्मद ने इस्लाम के महत्व को समझाने के लिए कई कठिनाइयों का सामना किया, दुश्मनों के जुल्म भी सहे और अल्लाह के संदेशों को लोगों तक पहुंचाया।

क्या है आखिरी पैगम्बर के संदेश

  1. जिस वक्त मुहम्मद साहब की मक्का में पैदाइश हुई, उस वक्त के दौर को ‘जाहिली दौर’ यानी अंधकार युग कहा जाता है. 40 साल की आयु में मुहम्मद साहब को अल्लाह ने अपना दूत बनाया. हजरत मुहम्मद साहब 23 साल तक लोगों को अल्लाह का पैगाम सुनाते रहे. जिसमें एक अल्लाह की इबादत, उसके साथ किसी को शरीक नहीं करना, उनको अल्लाह का आखिरी रसूल मानना है. कहा जाता है कि उन पर ईमान लाने वाले साथियों ने दुनिया से अंधकार युग का खात्मा किया. क्योंकि कुरआन में है, पढ़ो अपने रब के नाम से.
  2. बेगुनाह इंसान के कत्ल को पूरी इंसानियत का कत्ल : मुहम्मद साहब ने जमीन पर किसी भी तरह की हिंसा को नाजायज़ करार दिया. उनका संदेश थाकि धरती पर किसी बेगुनाह का कत्ल पूरी इंसानियत (मानवता) का कत्ल है.
  3. औरतों को संपत्ति में हक दिया : मुहम्मद साहब के दौर में बच्चियों को ज़िंदा दफ्ना दिया जाता था, उस दौर में उन्होंने इसपर न सिर्फ रोक लगाई बल्कि औरतों को बराबरी का हक दिया. माता-पिता की संपत्ति में हिस्सेदार बनाया.
  4. कोई छोटा, कोई बड़ा नहीं, काले-गोरे सब बराबर हैं : बतौर अल्लाह के दूत (अवतार) अपने 23 साल की जिंदगी में पैगंबर-ए-इस्लाम ने दुनिया को 1450 साल पहले ये संदेश दिया के अल्लाह (ईश्वर) के सामने कोई बड़ा, कोई छोटा नहीं है. उनका साफ और सीधा संदेश था कि न गोरे काले से बेहतर हैं, न काले गोरे से बेहतर हैं, बल्कि सब बराबर हैं. अल्लाह के नजदीक एक इंसान दूसरे इंसान से नस्ल या क्षेत्र की बुनियाद पर बड़ा या छोटा नहीं है.

लगाई जाती हैं सबील और पिलाया जाता है पानी

हजरत मोहम्मद के जन्म दिवस के मौके पर खुशी के साथ-साथ लोगों की सेवा भी की जाती है. गरीबों में खाना बांटा जाता है तो कई लोग पियासों को पानी पिलाने के लिए सबील लगाते हैं. ईद की तरह अपने रिश्तेदारों और पड़ोस में घर में बनी हुई मीठी चीज हलवा आदि भेजा जाता है.

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